रहस्यमाई चश्मा भाग - 21
संत समाज के लिए शुभा को सँभाल पाना पल प्रहर चुनौती बनता जा रहा था उसने भोजन करना भी बहुत सीमित कर दिया संत समाज उसके समक्ष भोजन रख देता वह कभी भोजन करती कभी नही करती शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो चुकी थी लेकिन ऐसी स्थिति में भी उंसे अपने दैनिक क्रिया का ध्यान था यह बात संत समाज के लिए कुछ राहत भरी थी वह पूरे दिन और रात सिर्फ मंदिर के गर्भ गृह में बैठी शिवालय के शिवलिंग को एक टक निहारती रहती और विराज और सुयश पुकारती रहती,,,,,
संत समाज भी अपनी अर्चना में शुभा के जीवन पथ का उजियार ही मांगता उंसे यह भय सताए जा रहा था कि वन प्रदेश में संत समाज के मध्य एक नारी के जीवन मे या जीवन के साथ कुछ भी अपशगुन हो जाए तो अपयश संत समाज को लगेगा और ईश्वर से सदा के लिए विश्वास भी डगमगाता रहेगा अतः संत समाज की चिंता का वास्तविक कारण शुभा का वहाँ होना था जिसे आदिवासी समाज उन्हें अपनी पुत्री कि तरह सौंप गया था,,,,,,
सर्वानद जी चिंतित रहते साथ ही साथ अन्य संत भी बहुत शुभा की दशा देखकर बहुत परेशान रहते सभी ईश्वर के चमत्कार की आशा लगाए हुए थे उनके पास एव आदिवासी समाज के सहयोग से वन प्रदेश में जो उपलब्ध जड़ी बूटियों से जो चिकित्सा का प्रायास भी पहले कि अपेक्षा बहुत कठिन हो चुका था कारण शुभा भोजन तो करती नही थी ना सो पाती थी थोड़ा बहुत झपकी ले ले वही बहुत बड़ी बात थी,,,,,,
संत समाज शुभा को लेकर विकल्प विहीन और दिशा हिंन हो चुका था फिर भी साहस विश्वास नही छोड़ा था यही उनके पास शुभा के हितार्थ बचा भी था जिसके कारण अनेको चुनौतियों परेशानियों का नित्य सामना करने के बावजूद संत समाज शुभा कि देख रेख पुत्री कि तरह कर रहा था समय काल का चक्र चलता जा रहा था।
मंगलम चौधरी ने अपने ड्राइवर को पहले ही बता दिया था कि सुयश के साथ मैं उसके गांव उसके माँ के विषय मे जानकारी के लिए जाएंगे मेहुल पहले से ही तैयार था और मालिक मंगलम चौधरी के आदेश कि प्रतीक्षा कर रहा था,,,,
चौधरी साहब का आदेश मिलते ही मेहुल कार के साथ खड़ा हो गया मंगलम चौधरी जिस प्रकार हाथी घोड़े के शौकीन थे वैसे ही कारो के भी शौकीन थे उनके पास उस जमाने की महंगी कारे थी उस समय भारत मे गिने चुने लोंगो के पास थी ।मंगलम चौधरी ने सिंद्धान्त को बुलाया और उससे सुयश के गांव तक पहुचने का सुगम मार्ग एव अन्य आवश्यक बातों पर विचार विमर्श किया जिसे सिंद्धान्त ने अपनी यात्रा के दौरान एव शुभा की तलाश में अनुभव किया था ।
चौधरी साहब ने सिंद्धान्त को अपनी अनुपस्थिति में जिम्मेदारियों के निर्वहन का निर्देश दिया और सुखिया काका सुयश को लेकर सुयश के गांव चल पड़े कुछ घण्टो कि यात्रा के उपरांत मंगलम चौधरी सुखिया काका और सुयश के साथ उसके गांव पहुंचे सुयश उन्हें सीधे अपनी झोपडी के पास ले गया जो गांव के बाहर मंदिर कि जमीन में ही स्थित थी,,,,
और शुभा के जाने के बाद वह वीरान हो उजड़ चुकी थी अब वहां सिर्फ मिठ्ठी का घड़ा एव चूल्हा और कुछ भोजन बनाने के सामान जैसे चौकी बेलन इत्यादि ही पलान के पतहर के नीचे दबे हुए थे जो दिख रहे थे मंगलम चौधरी के गांव के मंदिर पर पहुंचते ही गांव के बच्चे बूढ़े नौजवान मंदिर कि तरफ़ हो लिए,,,,,
उस काल समय मे जब कोई भी कार या दोपहिया चारपहिया वाहन जाती थी गांव के लिए कौतूहल एव नई अनुभूति होती थी गांव के क्योकि गांव में या तो कभी कभार सरकारी अधिकारी ही किसी बहुत विशेष कारण अवसर पर कार या फटफटिया पर आते थे ये दोनों ही वाहन आम जन को सुलभ नही था,,,,,
सुलभ था तो सरकारी हाकिमो के अतिरिक्त मंगलम चौधरी जैसे बड़े आदमियों को मंदिर के पास कार देखने की भीड़ तो लगी ही थी जब भीड़ ने सुयश को देखा तो कहा सुयश कहा रहा तू दिन दिन ये क्या हुआ तुम्हारा दाहिना हाथ कैसे नाही रहा और तुम्हारे साथ ये कौन लोग है आदि आदि प्रश्नों की झड़ी लगा दी गांव वालों ने मंगलम चौधरी सुखिया काका और मेहुल आवक थे,,,,,
गांव के मुखिया मुख्तार सबसे अधिक विद्वान श्यामाचरण झा जी को जब इस बात की सूचना मिली की सुयश का दाहिना हाथ नही रहा और उसके साथ दो तीन आदमी कार से आये है तो वह सोचने लगे कि सिंद्धान्त जब आया था तब उसने ऐसी किसी हनहोनी के संदर्भ में नही बताया था वह अपने दुआरे बैठे ही गांव में आये अतिथियों और सुयश का इंतजार करने लगे उन्हें मालूम था कि गांव में जो भी आता है उनसे बिना मुलाकात के नही जाता,,,,,
मंगलम चौधरी कुछ देर ध्वस्त पलान को देखने के बाद मंदिर में सुखिया काका को लेकर गए मेहुल सुयश के साथ उसके उजड़े आशियाने को एव सुयश कि भावनाओ एव उससे जुड़ी यादों की अनुभूति को अन्तरात्मा से महसूस कर रहा था सुयश कि आंखे नम थी बीच बीच मे आंसू के बूंद टपकने लगते मेहुल उंसे ढाढस देता लेकिन उसे भी भलीभांति मालूम था कि सुयश के साथ ईश्वर ने बहुत अन्याय किया है,,,,,,
अभी सुयश ने किशोर से युवा कि दहलीज पर कदम ही रखा था कि दाहिना हाथ साथ नही रहा और माँ का पता नही मंगलम चौधरी मंदिर के पुजारी पण्डित तीरथ राज के समीप सुखिया के पास ज्यो ही पहुंचे पण्डित तीरथ राज ने तुरंत कम्बल जमीन पर बिछाया और मंगलम चौधरी से बड़ी विनम्रता से अनुरोध किया कि महाराज आप पधारे मेरे लिए बड़े सौभाग्य कि बात है,,,,,,
मंदिर में कुर्सी तो है नही यदि आपके महंगे पोशाक खराब ना हो और आपके रुतबे रुआब पर कोई असर ना पड़े तो आप कम्बल पर विराजे मंगलम चौधरी को लगा पण्डित तीरथ राज को शुभा ने सब कुछ बता दिया है तभी तो विराज को विराजने कि बात कर रहे है,,,,,
मंगलम चौधरी कुछ देर शांत रहने के बाद बोले नही पुजारी जी मंदिर में कोई बड़ा छोटा धनवान दरिद्र नही होता यह तो परम शक्ति परमात्मा का दरबार है यहाँ सभी बराबर है पुजारी और मंगलम चौधरी कि वार्ता चल रही थी उधर सुखिया काका अपने अंगौझा से पुजारी द्वारा बिछाए कम्बल को एव आस पास के मिट्टी को बड़ी तन्मयता से जुटे थे एकाएक सुखिया काका बोले मॉलिक अब आप आसन ग्रहण करो हमहू झाड़ पोछ दिए है!
मंगलम चौधरी पण्डित तीरथ राज के बिछाए कम्बल पर बैठ गए पण्डित जी ने पहले से ही मंदिर में आये चढ़ावे से कुछ अच्छी खाद्य वस्तुयों को साफ करके अल्पाहार हेतु चौधरी साहब से निवेदन के स्वर में कहा महाराज मंदिर में यही उपलब्ध है आप बहुत दूर से आये है इसे ही भगवन का प्रसाद समझ कर ग्रहण करे,,,,,,,
चौधरी साहब ने पण्डित जी द्वारा दिये मिश्री बेर कुछ अन्य फलों को ग्रहण किया जब चौधरी साहब पण्डित जी के दिये बेर खा रहे थे पण्डित जी ने कहा महाराज आज हम धन्य हुए मेरे भग्यवान भोले नाथ के मंदिर में साक्षात आपके रूप में राम आये है जो अपनी सीता को खोजने निकले है,,,,,
क्रमशः
kashish
09-Sep-2023 08:01 AM
Awesome part
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Abhilasha Deshpande
16-Aug-2023 11:19 AM
Nice
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Gunjan Kamal
20-Jul-2023 11:37 PM
👌👏
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